आचार्य श्रीराम शर्मा >> मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधान मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म-विधानश्रीराम शर्मा आचार्य
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इसमें मरणोत्तर श्राद्ध-कर्म विधानों का वर्णन किया गया है.....
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दिव्य-मनुष्य तर्पण
तीसरा तर्पण दिव्य-मानवों के लिए है। जो पूर्णरूप से समस्त जीवन को लोक कल्याण के लिए अर्पित नहीं कर सके; पर अपना, अपने परिजनों का भरण-पोषण करते हुए लोकमंगल के लिए अधिकाधिक त्याग-बलिदान करते रहे, वे दिव्य मानव हैं। राजा हरिश्चन्द्र, रन्तिदेव, शिवि, जनक, पाण्डव, शिवाजी, प्रताप, भामाशाह, तिलक जैसे महापुरुष इसी श्रेणी में आते हैं।
दिव्य मनुष्य तर्पण उत्तराभिमुख किया जाता है। जल में जौ डालें। जनेऊ कण्ठ में माला की तरह रखें। कुश हाथों में आड़े कर लें। कुशों के मध्य भाग से जल दिया जाता है। अंजलि में जल भरकर कनिष्ठा (छोटी उगलो) की जड़ के पास से जल छोड़े, इसे प्राजापत्य तीर्थ कहते हैं। प्रत्येक सम्बोधन के साथ दो-दो अंजलि जल दें -
ॐ सनकादयः सप्तर्षयः आगच्छन्तु गृहणन्तु एतान् जलाञ्जलीन्।
ॐ सनकस्तृप्यताम् ॥२॥
ॐ सनन्दनस्तृप्यताम्॥२॥
ॐ सनातनस्तृप्यताम्॥२॥
ॐ कपिलस्तृप्यताम् ॥२॥
ॐ आसुरिस्तृप्यताम्॥२॥
ॐ वोढुस्तृप्यताम्॥२॥
ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम्॥२॥
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- ॥ मरणोत्तर-श्राद्ध संस्कार ॥
- क्रम व्यवस्था
- पितृ - आवाहन-पूजन
- देव तर्पण
- ऋषि तर्पण
- दिव्य-मनुष्य तर्पण
- दिव्य-पितृ-तर्पण
- यम तर्पण
- मनुष्य-पितृ तर्पण
- पंच यज्ञ